ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में अध्यक्ष, आयुर्वेद केन्द्र पतंजलि योगपीठ, आचार्य बालकृष्ण और उत्तराखंड सरकार के शिक्षा, स्वास्थ्य और संसदीय कार्य मंत्री धनसिंह रावत सपरिवार परमार्थ निकेतन पहुंचे। अध्यक्ष आयुर्वेद केन्द्र पतंजलि योगपीठ आचार्य बालकृष्ण और मंत्री धनसिंह रावत ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती के सान्निध्य में परमार्थ निकेतन परिवार के साथ मिलकर माँ गंगा का पूजन किया और राज्य की समृद्धि के लिए प्रार्थना की। इसके साथ ही, उन्होंने उत्तराखंड के विकास, प्रकृति के साथ संस्कृति के संरक्षण पर गहन चर्चा की। आज अंतर्राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण दिवस के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि आपदा जोखिमों को कम करने का एक ही मंत्र है ’’प्रकृति है तो प्रगति है; प्रकृति है तो संस्कृति है और प्रकृति है तो संतति है। वर्तमान समय में जब पूरा विश्व तेजी से विकास की ओर बढ़ रहे हैं, ऐसे में यह जरूरी है कि हम प्रकृति के महत्व को समझें और उसकी रक्षा करें। स्वामी जी ने कहा कि प्रकृति का संरक्षण और संतुलन, प्रगति के लिए अत्यंत आवश्यक है। प्राकृतिक संसाधनों के बिना, हम न तो औद्योगिक विकास कर सकते हैं और न ही कृषि उत्पादन को बढ़ा सकते हैं। जल, वन, और मिट्टी जैसे प्राकृतिक संसाधन हमारी सभी आर्थिक गतिविधियों की नींव हैं। यदि हम इन संसाधनों का सही उपयोग और संरक्षण नहीं करेंगे, तो हमारी प्रगति भी स्थाई नहीं हो सकेगी और हमेशा आपदाओं का खतरा मंडराते रहेगा। स्वामी जी ने कहा कि हमारे शहरों और गांवों में बढ़ता प्रदूषण, जल संकट, और वनक्षेत्रों का विनाश यह दर्शाता है कि हम प्रकृति का सही उपयोग नहीं कर रहे हैं। यदि हम स्थायी विकास के सिद्धांतों को अपनाएं और प्रकृति का संरक्षण करें, तो हम अपनी प्रगति को स्थाई और सुरक्षित बना सकते हैं और आपदाओं को भी कम कर सकते है। स्वामी जी ने कहा कि प्रकृति और संस्कृति का अटूट संबंध है। हमारी संस्कृति, लोक कथाएँ, पर्व, त्योहार और परम्परायें सभी प्रकृति से प्रेरित हैं और उत्तराखंड़ का तो पूरा इतिहास, संस्कृति व संस्कार प्रकृति का संरक्षक है और प्रकृति के विभिन्न पहलुओं का सम्मान भी करता है। आचार्य बालकृष्ण जी ने कहा कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर योग और आयुर्वेद का प्रकृति के साथ गहरा संबंध है। योग हमें शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को संतुलित रखने में मदद करता है, जबकि आयुर्वेद प्राकृतिक औषधियों और उपचारों पर आधारित है। यदि हम प्रकृति का संरक्षण नहीं करेंगे, तो हमारी संस्कृति भी संकट में आ सकती है। प्राकृतिक आपदाओं, जलवायु परिवर्तन, और पर्यावरणीय असंतुलन के कारण न केवल हमारी भौतिक संपत्ति खतरे में है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर भी प्रभावित हो रही है। प्रकृति हमारे भविष्य की पीढ़ियों के लिए आवश्यक संसाधन प्रदान करती है। यदि हम आज प्रकृति का संरक्षण नहीं करेंगे, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए जीवन जीना कठिन हो जाएगा। आने वाली पीढ़ियों को शुद्ध जल, स्वच्छ हवा और खाद्य पदार्थों की उपलब्धता सुनिश्चित करना वर्तमान पीढ़ी की जिम्मेदारी है। मंत्री धनसिंह रावत ने कहा कि मैं सपरिवार कल से परमार्थ निकेतन में पूज्य स्वामी जी के पावन सान्निध्य में हूँ। कल माँ गंगा जी की आरती, माँ शबरी रामलीला, आज का प्रातःकालीन यज्ञ और गंगा जी का पूजन इन सभी अवसरों पर स्वामी के उद्बोधन में प्रकृति व संस्कृति के संरक्षण का संदेश समाहित है क्योंकि हमारी संस्कृति और भविष्य की संतति, प्रकृति के संरक्षण पर ही निर्भर करती है इसलिये हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम अपने आस-पास के पर्यावरण को सुरक्षित और स्वच्छ रखें। हमें प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग करना होगा और उन्हें बचाने के अपने-अपने स्तर पर प्रयास करने होंगे। स्वामी चिदानन्द सरस्वती और आचार्य बालकृष्ण ने मंत्री और उनके पूरे परिवार को रूद्राक्ष की माला भेंट कर उनका अभिनन्दन किया।
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